Biography of Sadhu Sundar Singh / साधु सुन्दर सिंह
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Description
संक्षिप्त विवरण:
भारत में यह रीति चली हुई है कि जब मनुष्य बूढ़ा हो जाता है और गृहस्थ जीवन में उसका मन नहीं लगता तो वह इन सब बातों से मुंह फेरकर बैराग ले लेता है। लोग ऐसे ही मनुष्य को बड़े आदर से रखते हैं क्योंकि वे कहते हैं कि ऐसे पुरुष ने अपना कर्त्तव्य पालन किया है। विवाह कर कुटुंब कबीले में रह उसने अपने संसारी कर्त्तव्य का पालन किया और जिसके पीछे बैराग लेकर वह ईश्वर की ओर अपने कर्त्तव्य को पूरा कर रहा है। परन्तु साधु सुन्दर सिंह जी ने अपनी बाल्यवस्था से ही अपना सब सुख भोग त्याग दिया। वह न विवाह करता है और न संसारी झंझटों में फंसता है परन्तु परमेश्वर की खोज में अपना सर्वोच्च देता है।
साधु सुन्दर सिंह जी ने हमें इस पुस्तक में मानो कि परमेश्वर और प्रभु मसीह के विषय में नया ज्ञान दिया है और हममें से बहुतों ने यह जान लिया है कि प्रभु मसीह की संगत में रहने और उनकी आज्ञापालन करने से वे क्योंकर अपने प्रभु के समान बनते जाते हैं। जहाँ कहीं साधुजी जाते थे तो लोग यही कहते थे कि देखो वे अपने प्रभु से कैसे मिलते-जुलते हैं! साधु सुन्दर सिंह जी का भारतीय होकर भारतीय रूप में भारत की आशा और विचार को प्रकट करना ही उनकी सेवा की सफलता का एक मूल कारण रहा है।
यह पुस्तक श्रीमती आर्थर पार्कर की उस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है जो सन् 1819 में अंग्रेजी में प्रकाशित की गई थी। श्रीमोहन जोशी, तथा डॉक्टर अप्पा स्वामी और देशबन्धु एण्ड्रूज़ की सहायता तथा लेखों में से जो कुछ लिया गया है उस के लिए उन का आभार व्यक्त करते है। आशा है कि पाठकगण भूलों को क्षमा कर इस भेंट को ग्रहण करेंगे।
Additional information
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No. of Pages | 144 |
Year Current Edition |
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